top of page

ˇ🔱 श्रीयंत्र की स्थापना एवं नवावरण पूजा का घर और कार्यस्थल में 🔱

172517880_817255759146101_8513507798937379546_n.jpg

श्रीचक्रस्य रहस्यं यत्, नवावरणपूजनम्।
गुप्तं गुह्यातिगुह्यं च, साधकैः साध्यते हि तत्॥

(श्रीचक्र का जो परम रहस्य है, वह नवावरण पूजा है — जो गुप्त, गुह्य और अति गुह्य साधना है, जिसे केवल दीक्षित साधक ही साध पाते हैं।)
श्रीयंत्र की स्थापना एवं नवावरण पूजा का घर और कार्यस्थल में महत्व
श्रीयंत्र, जिसे श्रीचक्र कहा जाता है, ब्रह्मांड की सम्पूर्ण रचनात्मक शक्ति का केन्द्र है। यह केवल एक यंत्र नहीं, बल्कि ललिता त्रिपुरसुन्दरी देवी का साक्षात् ज्यामितीय शरीर है। जब हम श्रीयंत्र की विधिपूर्वक स्थापना करते हैं और समय-समय पर उसमें नवावरण पूजा करते हैं, तो वह स्थान केवल चार दीवारों वाला भवन नहीं रहता — वह एक जीवित देवालय बन जाता है।
घर में श्रीयंत्र की स्थापना से वहाँ का ऊर्जा क्षेत्र (energy field) अत्यंत सात्विक, शांत और उच्च चेतनात्मक बनता है। यह संपर्कों में मिठास, पारिवारिक समरसता, आर्थिक संतुलन, और रोग-विरोधी वातावरण का निर्माण करता है। जो स्थान नकारात्मकता, विवाद, डर, आलस्य या अव्यवस्था से घिरा हो — वहाँ श्रीयंत्र एक शक्तिशाली ऊर्जा-जागरण केंद्र बन जाता है।
ऑफिस या कार्यस्थल पर जब श्रीचक्र की स्थापना की जाती है, और नवावरण पूजा नियमित रूप से (मासिक या वार्षिक रूप में) की जाती है, तो यह व्यापारिक बाधाओं, निर्णय की अस्पष्टता, आर्थिक हानि, क्लेश व प्रतियोगिता को शांत करता है। यह प्रेरणा, स्पष्टता, तेज निर्णयशक्ति, और उच्च स्तरीय मानसिक ऊर्जा उत्पन्न करता है — जिससे कार्यस्थल धन, यश और स्थायित्व का केंद्र बन जाता है।

नवावरण पूजा में प्रत्येक आवरण केवल एक ज्यामितीय आकृति नहीं, बल्कि एक जीवित ऊर्जा क्षेत्र है। जब यह पूजा गुरु के निर्देश में, विधिपूर्वक, मंत्र, न्यास और ध्यान सहित की जाती है, तब साधक का शरीर स्वयं श्रीचक्र बन जाता है, और उसकी आत्मा — बिंदु में स्थित पराशक्ति में विलीन हो जाती है।

नवावरणपूजया सदा, चक्रराजे प्रतिष्ठिता।
सा शक्तिरूपिणी देवी, सर्वसिद्धिप्रदा भवेत्॥
(जो साधक नवावरण पूजा के माध्यम से श्रीचक्र में देवी को प्रतिष्ठित करता है, उसे सर्व सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं — वह स्वयं शक्ति का स्वरूप बन जाता है।)

लाभ सारांश रूप में:

  • नकारात्मक ऊर्जा और दृष्टदोष का शमन

  • लक्ष्मी, सरस्वती, और दुर्गा — तीनों शक्तियों की संयुक्त कृपा

  • मन, बुद्धि और संबंधों में संतुलन

  • मानसिक स्पष्टता और निर्णय की तीव्रता

  • व्यापार में वृद्धि, सौभाग्य और दीर्घकालिक स्थायित्व

  • घर और कार्यस्थल में दिव्यता, सुरक्षा और प्रेम का वास

नवावरण पूजा श्रीचक्र के नौ आवरणों की पूजन प्रक्रिया है, जो श्रीविद्या तंत्र की आत्मा कही जाती है। यह साधना केवल एक विधिपूर्वक पूजन नहीं, बल्कि देह, प्राण, मन, बुद्धि और आत्मा की परतों का शुद्धिकरण है। श्रीचक्र के नौ आवरण — भूपुर से लेकर बिंदु तक — साधक की चेतना के नौ द्वार हैं, जिनके माध्यम से वह देवी ललिता त्रिपुरसुन्दरी के परम रहस्य तक पहुँचता है। इस पूजा के माध्यम से साधक त्रैलोक्यमोहन शक्ति से लेकर सर्वानन्दमयी शक्ति तक का आह्वान करता है। प्रत्येक आवरण में स्थित योगिनियाँ, शक्तियाँ और तत्त्वदेवियाँ साधक के भीतर की वासनाएँ, अज्ञान, कर्मवृत्तियाँ और आत्मविरोधी संस्कारों को नष्ट कर देती हैं।

यह पूजा साधक के भीतर देवी का सिंहासन स्थापित करती है। जहाँ साधक पहले केवल पूजक होता है, वहीं नवावरण पूजा के द्वारा वह स्वयं पूज्य बनता है। यह साधना नवदुर्गा, नवकन्या, नवग्रह, और नवशक्ति को साधक के शरीर में एकीकृत करती है। नवावरण पूजा के बिना श्रीचक्र केवल एक यंत्र है; और नवावरण पूजा के साथ वह चैतन्य का मेरु बन जाता है।

संपर्क:

srividyadnipeetham@gmail.com

tel. -8590836425

South India: (Sept.-Feb)

Sri Vidyadni Peetham,

Vrindavan Retreat,

Rajiv Nagar-Mysore.

North India; (March-Augst)

Lotus Boulevard

Noida, Sector 100, Pin 201301.

bottom of page