🔱 श्रीविद्या साधना – आत्मा से ब्रह्म तक की सीढ़ी 🔱

श्रीविद्या साधना के गंभीर, गूढ़ एवं पारिवारिक जीवन में फलदायक लाभ, जो पुरोहितों, गृहस्थ साधकों एवं महिलाओं
तीनों के लिए समर्पित है। यह पथ केवल त्याग का नहीं, पूर्णता का है।
श्रीविद्या कोई साधारण साधना नहीं — यह योग, तंत्र, वेद, मनोविज्ञान, और भक्ति का ऐसा समन्वय है, जो साधक को भौतिक, मानसिक, आध्यात्मिक, और लौकिक चारों स्तरों पर उत्कर्ष प्रदान करती है।
यह साधना पुरोहितों के लिए एक उच्चस्तरीय यज्ञात्मक प्रक्रिया है, जहाँ हर मंत्र केवल शब्द नहीं होता — वह देवी का स्वरूप, उसकी शक्ति, और उसका चैतन्य होता है। हर आह्वान, तर्पण और यंत्रपूजन उन्हें एक सच्चे आचार्य के रूप में ब्रह्मरूप तक ले जाता है।
गृहस्थ साधकों के लिए, यह साधना परिवार में सुख, संतति, समृद्धि और संतुलन का मूल स्तम्भ है। गृहस्थ जीवन में संघर्ष, रोग, मानसिक अशांति, पारिवारिक क्लेश या आर्थिक अस्थिरता — इन सबका समाधान श्रीविद्या साधना के द्वारा संभव है, क्योंकि यह आंतरिक और बाह्य शक्तियों को संतुलित करती है। यह पथ यह सिखाता है कि संसार में रहते हुए भी ब्रह्म का साक्षात्कार किया जा सकता है।
स्त्रियों के लिए, श्रीविद्या साधना अत्यंत दिव्य और विशेष रूप से फलदायक मानी गई है। क्योंकि देवी स्वयं स्त्री है, अतः हर महिला का शरीर स्वयं मूलाधार से लेकर सहस्रार तक श्रीचक्र के रूप में बना है। श्रीविद्या साधना से स्त्रियाँ आत्म-सशक्तिकरण, भयमुक्त जीवन, शुद्धि, और देवत्व की अनुभूति प्राप्त कर सकती हैं। यह साधना उन्हें , बल्कि अंतःकरण से देवी बनने की शक्ति देती है
दक्षिणाचार साधना — सात्विक आराधना का राजपथ
दक्षिणाचार वह दिव्य साधना पथ है जो अनुशासन, शुद्धता और आंतरिक जागृति पर आधारित होता है। इसमें तामसिक या उग्र विधियों के स्थान पर सात्विक भाव, मंत्र, ध्यान और यज्ञ को प्रधानता दी जाती है। इस परंपरा में साधक शरीर, मन, वाणी और आत्मा – चारों को देवी के चरणों में समर्पित करता है। इस मार्ग में साधना की शुरुआत कालवाहन से होती है, जहाँ नवशक्तियों, नवकन्याओं और त्रिकाल के दिव्य तत्वों का आवाहन कर साधक अपने चारों ओर ऊर्जा का एक दिव्य रक्षण मंडल स्थापित करता है। इसके पश्चात महागणपति कर्म किया जाता है, जिससे समस्त विघ्नों का शमन होता है और साधना का पथ सरल व निर्विघ्न बनता है।
इसके उपरांत देवी के विशेष स्वरूपों की आराधना की जाती है। देवी श्यामा क्रमम् में साधक अपने भीतर सुषुप्त विद्याओं को जाग्रत करता है और मध्यम मार्ग में स्थिरता प्राप्त करता है। देवी मातंगी कर्म वाणी की शुद्धि, सरस्वती तत्व की सिद्धि और आंतरिक माधुर्य को विकसित करता है। देवी बाला त्रिपुर सुन्दरी कर्म अत्यंत कोमल, सहज और सुलभ आराधना है, जो बाल भाव, आत्मीयता और चंचल चेतना को केन्द्रित करती है।
इन सभी साधनाओं की चरम परिणति श्री ललिता त्रिपुर सुन्दरी कर्म में होती है, जो आत्मा और परमात्मा के मध्य मिलन का सेतु है। इसमें नवावरणों की पूजन प्रक्रिया, यंत्राभिषेक, जप, ध्यान, ध्यान-शक्ति, और ह्रदय में विराजमान देवी का आवाहन सम्मिलित होता है।
श्रीविद्या के लाभ:
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आत्मा में दुर्बलता नहीं, दैवत्व का उदय होता है
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यंत्र, मंत्र और तंत्र — तीनों का संतुलित अभ्यास होता है
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जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समृद्धि, स्पष्टता और शक्ति
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मृत्यु का भय, अज्ञात का संशय, और कष्टों की छाया दूर होती है
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साधक काल, कर्म और कारण के पार जाकर समत्व और साक्षित्व प्राप्त करता है
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गुरु के बिना यह साधना नहीं चलती। गुरु ही मूल हैं, और गुरु ही शक्ति के द्वार हैं।
जो श्रीविद्या को समझना चाहता है, उसे पहले श्रद्धा से झुकना, शुद्धि से जीवन जीना और निरंतर साधना करनी होती है। -
श्रीविद्या महाविद्या भी है और सुखविद्या भी, यह केवल वैराग्य नहीं, रस, रति और रहस्य का संतुलन है।
यही कारण है कि यह संन्यासी, गृहस्थ, पुरोहित, स्त्री या बालिका — सबके लिए उपयुक्त है, यदि मार्ग गुरु से मिला हो और साधना नियमित हो।
व्यक्तिगत सत्र (Private Session) – ₹ 21,000/- (गुरु दक्षिणा)
समूह सत्र (Group Session) – ₹ 11,001/- (गुरु दक्षिणा)
संपर्क:
tel. -8590836425
South India: (Sept.-Feb)
Sri Vidyadni Peetham,
Vrindavan Retreat,
Rajiv Nagar-Mysore.
North India; (March-Augst)
Lotus Boulevard
Noida, Sector 100, Pin 201301.